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कॉलगर्ल

लवलीन की जिंदगी खुशियों से महक उठी थी। क्योंकि उसने अपनी जिंदगी में खुद एक फैसला लिया था और उसे फैसले का लवलीन को जरा भी पछतावा नहीं था। उसके मन में आहलादक सुकून से पूर्ण रूप से संतुष्ट था। लवलीन इस वक्त आदमकद आईने के सामने अपने ही रूप को ऐसे देख रही थी जैसे आज आईने में लवलीन नहीं बल्कि कोई खुशहाल परी नजर आ रही हो। "कौन हो तुम?" लवलीन प्रतिबिंब को देखकर बुदबुदा उठी। "तुम मुझे नहीं जानती?" "नहीं मैं तुम्हें नहीं जानती!" "लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं?" "अच्छा तो बताओ मैं कौन हूं?" तुम अब वो पहले वाली मुर्जाई सी, उदास और खोई खोई लवलीन नहीं हो।" "अच्छा तो अब मैं कौन हूं?" लवलीन ने अपनी अंतरात्मा से पूछा। "तुम अब एक खूबसूरत परी हो, एक नायाब हीरा हो जिसे हासिल करने के लिए हर कोई तरसता है। तुम्हारी खूबसूरती का हर कोई दीवाना है। तुम्हारी खुशबू फूलों की तरह फिजाओं में चारों तरफ बिखर रही है। अब तुम्हारी महक को हर कोई सूंघना चाहता है। तुम्हारे मखमली बदन को छूकर भवरे पवन होना चाहते हैं। तुम इसे बहुत अच्छी तरह समझ रही हो। और सबसे बड़ा उदाहरण तुमने आज ही दिया है। संकेत नाम के कबूतर को अपनी जाल में फंसा कर। उसके साथ पहली डील करके। "हां, शायद तुम सही कह रही हो! बहरहाल उसने मुझे अपनी जाल में फाँस लिया है। सोचा था मैं ही उसका उपयोग कर रही हूँ मगर मैं कितना गलत थी? मतलब खत्म होते ही उसने अपना असली रूप दिखा दिया था। जैसा मैंने सोचा था उसे विपरीत सब कुछ हुआ। मैं खुले आसमान में सैर करने वाली परी नहीं बल्कि उसके हाथों की कठपुतली बन गई हूँ समझी तुम?" कहते हुये लवलीन ने आईने में नजर आ रहे अपने प्रतिबिम्ब के सामने आँखे निकाली। वह गुस्से से फुफकारती हुई सोफे पर आकर बेठ गई। संकेत परछाई की तरह अब उसके साथ खडा था। संकेत के इरादे को भाँपना उसके बस की बात नहीं थी। उसकी हर एक साँस अब संकेत के लिए थी। फिर भी उसके मन में संकेत के प्रति कोई फरियाद नही थी। संकेत के दिशानिर्देश अनुसार वो हर वो काम को अंजाम दे रही थी जो करने को संकेत बोलता था। लवलीन के मनमे अपार शांति थी। चैन था--भरपूर सुकून था। लवलीन ने कभी सोचा नहीं था कि फेसबुक पर उसके साथ दोस्ती करने वाला कोई अंजान लड़का इस तरह करीब आएगा। लेकिन उसमें जितना कसूर संकेत का था उतना ही उसका भी था। पहले फेसबुक की आईडी से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर संकट ने उसके साथ दोस्ती कर ली। एक अनजान लड़के की दोस्ती को एक्सेप्ट करने की सबसे बड़ी भूल तो लवलीन ने की थी। 'हाय --हेलो' से शुरू हुई बातचीत इतनी तेजी से आगे बढ़ते चली गई की उसे पता ही नहीं चला। संकेत जैसे-जैसे लवलीन के पास अपने काम करवाता गया वैसे उसे यकीन हो गया मेरे जैसी ही किसी लड़की की तलाश थी। और संकेत की तलाश उस पर आकर खत्म हो गई थी। वह संकेत के हाथों की कठपुतली बन गई थी। लवलीन का गुनाह यह था कि वह अपनी ही मर्जी से उसे रास्ते पर चल पड़ी थी उसे थोड़ी ना पता था आगे काल उसका किस तरह से इसका फायदा उठाने वाला था। लवलीन को पहले ही दाव पर संकेत टकरा गया था। शायद कुदरत को लवलीन का शारीरिक पतन बिल्कुल मंजूर नहीं था। लहू का व्यापार लवलीन के लिए अब उसकी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया था। संकेत ने उसे काबू जरूर किया था लेकिन लवलीन को पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था यह सब करके संकेत पूरी तरह अपसेट था। उसके मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। कोई बात थी जो उसे मन ही मन खाए जा रही थी। लवलीन ने कुछ दिन उसके साथ बिता कर इतना तो जान ही लिया था कि मानो ना मानो संकेत उतना बुरा इंसान नहीं था। हो सकता है हालत ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया हो। हो सकता है उसे वश करना भी संकेत की मजबूरी रही हो। कुछ भी तो नकारा नहीं जा सकता था। यही वजह थी कि संकेत की अच्छाई लवलीन के मन में सहानुभूति का कारण बनी थी। लवली अब पूरी तरह समर्पण भाव से संकेत के लिए काम करने लगी थी। पहले तो उसे लगता था संकट ने जिस तरीके से उसे ब्लैकमेल किया यकीनन वह उसके पास फ्री में अपना काम निकवायेगा।  लेकिन लवलीन की आंखें तब फटे की फटी रह गई जब संकेत अपनी बात पर खरा उतरा। उसने अपने पहले काम के बदले में एक मोटी रकम उसके हाथों में थमा दी। और वह कह रहा था कि आगे भी उसे इसी तरह पैसा मिलता रहेगा। मतलब कि वह अपनी जबान का पक्का था। लवलीन समझ नहीं पा रही थी क्या वजह थी जो वह इतना कठोर बन गया था? साकेत के लिए काम करते-करते लवलीन को अब पैसों का मोह नहीं रहा था। वह अपनी फैमिली की जिम्मेदारी से बंधी हुई न होती तो यकीनन संकेत के पैसा उसे वापस लौटा देती। वह यह सब सो रही थी कि तभी लवलीन का मोबाइल बज उठा। डिस्प्ले पर संकेत का नंबर फ्लैश हो रहा था। जैसे ही लवलीन ने कॉल रिसीव किया सामने से संकेत की आवाज गूंज उठी। उसे सतर्क करते हुए उसने कहा, अब हम मैदान में जब उतर ही गए हैं तो हम चलेंगे के साथ खेलेंगे। तुम सुन रही हो लवलीन।" 'हां....!' लवली ने नर्म लहजे में कहा। "हमें बहुत ही सावधानी से काम लेना होगा। हमसे छोटी सी भी गलती हुई तो मिशन फेल समझो। और मैं ऐसा होने देना नहीं चाहता। ऐसा समझ ले सब चीते की तरह नजरे गड़ाए बैठे हैं। अपने शिकार को हड़प लेने। लेकिन मैं किसी को कामयाब होने देना नहीं चाहता। सबकी आंखों में धूल डालकर हमें अपना खेल खेलना है और वही सबसे अच्छा खिलाड़ी है।" "मैं आपसे मिलना चाहती हूं!" लवलीन ने अपने मन की इच्छा जाहिर की। "अभी वह मुमकिन नहीं है! मगर हौसला रख मैं हमेशा तेरी परछाई की तरह तेरे साथ हूँ। तेरा साथ छोडना मुझे  गवारा नहीं है। मुझ पर यकीन रख। तुझे कभी कुछ नहीं होने दूंगा।" "ओके!" लवलीन के चेहरे पर उदासी छा गई। वह जिंदगी भर उसका इंतजार करने के लिए तैयार थे जिसने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी थी। वह संकेत का सही मायने में साथ चाहती थी। मिलेगा या नहीं वह तो ऊपर वाला नहीं जानता था। (क्रमशः)

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2 Comments

RISHITA

13-Oct-2023 01:10 PM

V nice

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hema mohril

11-Oct-2023 09:29 PM

V nice

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